कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़ स्थापित 1959
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स्वादिष्ट कुमाऊँनी व्यञ्जन

कुमाँऊनी व्यंजन भारत के उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र का भोजन है । कुमाँऊनी भोजन सरल और पौष्टिक है, जो हिमालय के कठोर वातावरण के लिए उपयुक्त है । दालें जैसे गौहट (या कुलथ जैसी विभिन्न तैयारियों में बनाया जाता है। सभी एक ही दाल से बनी अनूठी तैयारियाँ हैं। दही के साथ झोली या करी। भट्ट की दाल से बनी चुड़कानी और जौला। चावल और गेहूं के साथ मडुआ जैसे अनाज लोकप्रिय हैं। 

जब भी बात देवभूमि उत्तराखंड की आती है तो वहाँ के व्यंजनों को भी खूब पसंद किया जाता है फिर चाहे बात झंगुरे की खीर की हो या मंडुवे की रोटी और तिल की चटनी की या हो बात भांग की चटनी की.. उत्तराखंड का पारंपरिक खानपान गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी माना गया है। भारत ही नहीं विदेशों में भी पहाड़ के मंडुवा, झंगोरा, काले भट, गहथ, तिल आदि अपनी मार्केट बना रहे हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक बताते हैं कि पहाड़ी अनाज सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। मंडुवा (मडुआ) मधुमेह की बीमारी में बेहद कारगर है। यह शरीर में चीनी की मात्रा नियंत्रित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। झंगोरा पेट संबधी बीमारियों को दूर करता है। काले भट में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। गहथ की दाल की तासीर गर्म होने के कारण यह गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद है।

कुमाऊँनी जायकेदार खानपान पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, सोशल मीडिया एवं यूट्यूब पर अपार लेखन सम्पदा दृष्टिगोचर हो जाएगी। लेकिन इस जायके का रहस्य बड़ी-बड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कम्पनियों द्वारा निर्मित मसालों पर निर्भर नहीं है। इस जायके का श्रेय तो वहां की प्राकृतिक जलवायु, खनिज युक्त भू-स्थलों से बहने वाले स्रोतों-स्रोतस्विनियों के नीर से सिञ्चित कन्दमूल और विभिन्न अन्न पादपों द्वारा प्रदत्त खाद्यान्नों में रची-बसी सुवास को जाता है। यही कारण है कि कुमाऊँनी महिलाओं द्वारा साधारण नमक को कुमाऊँ में उपलब्ध कुछ अन्य मसालायुक्त सामग्री डालने मात्र से निर्मित कुमाऊँनी नमक इतना स्वादिष्ट हो जाता है कि उसकी मांग आज अमेरिका आदि देशों तक में की जा रही है।

अपने स्वादिष्ट सुवास से लुभाने वाले ‘बस स्थानकों’ पर लगी चाट की दुकानों पर आंखों और जिह्वा को तृप्त करने वाले आलू के गुटकों, भांग की चटनी और ककड़ी अथवा मूली के रायते के स्वाद से भला कौन अनजान होगा?
भला किस उत्तराखंडी ने भट्ट की चुरकाड़ी, उसके डुबकों और उसकी दाल के साथ कुमाऊँ में उगाए गए धान के भात का स्वाद नहीं चखा होगा?
उत्तराखंड के निवासियों के अतिरिक्त अन्य भारतीयजन जिन कुमाऊँनी व्यञ्जनों से अनजान हैं, उनमें प्रमुखतः गडेरी और पिनाऊ के गुटके और सब्जी, सिसूंड़ का साग, थेचवाणी, चियूड़, खाजा, झुंगरे की खीर, छोली, बेड़ू या मंडुवे की रोटी, जौला, झोली, लिंगुड़ आदि उल्लेखनीय हैं।
अपनी जन्मभूमि कुमाऊँ से पलायन कर शहरों में बसे हुए कुमाऊँनीजन इन व्यञ्जनों के लिए कितने लालायित रहते हैं कि जब कभी कोई भी कुमाऊँ में जाता है अथवा कोई रिश्तेदार कुमाऊँ से यहां आता है, तो वह उनसे उक्त व्यञ्जनों की सामग्री मंगवाना नहीं भूलते।
कुछ खास व्यंजनों का विवरण निम्न है:-

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मंडवे (मडुआ) की रोटी - Mandve ki Roti

मंडवे की रोटी (रागी) कुमाऊं में सबसे अधिक खाया जाने वाली प्रमुख चीजों में से है.. उत्तराखंड के लोग अक्सर चूल्हे की मोटी-मोटी रोटी बनाते है और इसे बड़े चाव से खाते है। इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है और सेहत के लिए पौष्टिक आहार हैI अब इसकी मांग विदेशों में भी काफी हैI
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झंगुरे की खीर - Jhingore ki kheer

झंगुरे की खीर चावल की खीर जैसी ही होती है अंतर ये होता है कि झंगुर महीन और बारीक दाने के रुप में होता है और आसानी से खाया जा सकता है। पहाड़ो में झंगुरे को चावल के जैसा पकाकर दाल-सब्जी के साथ भी खाया जाता है।
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अरसा - Arsa

शादी-ब्याह के मौसम में इसे खास तौर पर बनाया जाता है। इसके लिए चावल को पीसकर आटे की शक्ल दी जाती है। फिर गुड़ को पिघलाकर इसमें मिलाया जाता है और बिस्किटफिर के आकार में तेल या घी में फ्राई किया जाता है। कुमाऊं का यह एक पारंपरिक मीठा पकवान है।
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भांग की चटनी - Bhaang ki chutney

शादी-ब्याह के मौसम में इसे खास तौर पर बनाया जाता है। इसके लिए चावल को पीसकर आटे की शक्ल दी जाती है। फिर गुड़ को पिघलाकर इसमें मिलाया जाता है और बिस्किटफिर के आकार में तेल या घी में फ्राई किया जाता है। कुमाऊं का यह एक पारंपरिक मीठा पकवान है।
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भट्ट की चुडकणी - Bhatt ki Chudkani

काला भट्ट या काली सोयाबीन उत्तराखंड की उपजाऊ भूमि में उगाई जाती है। दाल के विकल्प के रूप में काले भट्ट की चुरकानी राज्य के कई क्षेत्रों का मुख्य व्यंजन है, खास तौर पर कुमाऊं क्षेत्र का, जो अपने अनोखे मसालों और जड़ी-बूटियों के लिए मशहूर है। भट्ट की चुरकानी एक ऐसी रेसिपी है जिसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद मिलती है और हृदय रोगों का जोखिम कम होता है। 'जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन एंड न्यूट्रिशन रिव्यूज़' ने भी काले सोयाबीन की चिकित्सीय क्षमता को मान्य करते हुए कहा है कि इसमें मौजूद आयरन और प्रोटीन की मात्रा इसे मांस का एक बेहतरीन विकल्प बनाती है।
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पहाड़ी उड़द (मास की दाल)

काला भट्ट या काली सोयाबीन उत्तराखंड की उपजाऊ भूमि में उगाई जाती है। दाल के विकल्प के रूप में काले भट्ट की चुरकानी राज्य के कई क्षेत्रों का मुख्य व्यंजन है, खास तौर पर कुमाऊं क्षेत्र का, जो अपने अनोखे मसालों और जड़ी-बूटियों के लिए मशहूर है। भट्ट की चुरकानी एक ऐसी रेसिपी है जिसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद मिलती है और हृदय रोगों का जोखिम कम होता है। 'जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन एंड न्यूट्रिशन रिव्यूज़' ने भी काले सोयाबीन की चिकित्सीय क्षमता को मान्य करते हुए कहा है कि इसमें मौजूद आयरन और प्रोटीन की मात्रा इसे मांस का एक बेहतरीन विकल्प बनाती है।
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गहत की दाल

पहाड़ में सर्द मौसम में गहत की दाल लजीज मानी जाती है। प्रोटीन तत्व की अधिकता से यह दाल शरीर को ऊर्जा देती है, साथ ही पथरी के उपचार की औषधि भी है।यूं तो गहत आमतौर पर एक दाल मात्र है, जो पहाड़ की दालों में अपनी विशेष तासीर के कारण खास स्थान रखती है। वैज्ञानिक भाषा में डौली कॉस बाईफ्लोरस नाम वाली यह दाल गुर्दे के रोगियों के लिए अचूक दवा मानी जाती है। यह दाल पर्वतीय अंचल में शीतकाल में ज्यादा सेवन की जाती है।
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झोई (झोली) और भात

झोई न केवल स्वादिष्ट है बल्कि सेहतमंद भी है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम और छाछ से प्रोबायोटिक्स भरपूर मात्रा में होते हैं। हल्दी, जीरा और मेथी जैसे मसालों से इसमें सूजनरोधी और पाचन संबंधी लाभ भी होते हैं। झोली ठंड के मौसम के लिए एक बेहतरीन व्यंजन है क्योंकि यह आपको गर्म रखता है और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। "5 साल की उम्र में पहली बार जब गांव में एक महीने से अधिक रहने का सुयोग प्राप्त हुआ तो मेरी आमा दोपहर के भोजन में रोज झोली यानी झोई जरूर बनाती थी।
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साना हुआ नींबू

पहाड़ी नींबू को सबसे पहले छीला जाता हैI नींबू के छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैंI इसके साथ ही मूली और गाजर को भी अच्छी तरह छील कर छोटा-छोटा काटा जाता हैI इन सभी को एक साथ मिलाकर इसमें पिसा नमक, भांग के साथ पिसी हुई चटनी, हरा धनिया, पिसा हुआ गुड़ और दही भी मिलाया जाता हैI कुछ लोग इसमें संतरा, माल्टा और केला, अंगूर और अनार भी मिलाते हैं जो इसके स्वाद को और बढ़ाता हैI यह सेहत के लिए काफी लाभदायक होता है तथा यह शरीर को सर्दी के समय में गर्म रखने का काम करता है
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पहाड़ी कुमाऊनी रायता

पहाड़ी ककडी का रायता या खीरा का रायता एक पारंपरिक कुमाऊंनी रेसिपी है। भूजकोर से कद्दूकस किया हुआ खीरा गाढ़े दही, ताजी जड़ी-बूटियों और मसालों के साथ मिलाया जाता है। यह साइड डिश के रूप में ताज़गी देने वाला, ठंडा करने वाला और बहुत स्वादिष्ट होता है। यह रेसिपी जल्दी और सरलता से बीस मिनट में बन जाती है। पहाड़ी रायता में पीली सरसों के पेस्ट के साथ-साथ अन्य जड़ी-बूटियाँ और मसाले भी इस्तेमाल किए जाते हैं। पीली सरसों इस रायते को एक अनोखा स्वाद देती है
घुघुते

घुघते

घुघते उत्तराखंड के पारंपरिक पकवानों में से एक है, जो खासकर त्योहारों और विशेष अवसरों पर बनाया जाता है। यह एक प्रकार की मिठाई होती है जिसे गेहूं के आटे, गुड़, और घी से बनाया जाता है। घुघते को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तलते हैं, जिससे ये कुरकुरे और स्वादिष्ट बन जाते हैं। इसका सेवन चाय के साथ या फिर स्नैक्स के रूप में किया जाता है। उत्तराखंड में घुघते की परंपरा बहुत पुरानी है, और इसे खासकर मकर संक्रांति के मौके पर बनाया जाता है।
खजूर

खजूर

खजूर एक पौष्टिक और स्वादिष्ट फल है जिसे भारत में विभिन्न स्थानों पर उगाया जाता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से मिठाईयों और व्यंजनों में किया जाता है। खजूर में भरपूर मात्रा में विटामिन, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। खजूर का सेवन सर्दियों में ज्यादा किया जाता है क्योंकि यह शरीर को गर्मी प्रदान करता है और ऊर्जा से भरपूर होता है। इसके अलावा, खजूर का उपयोग व्रत के दौरान ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है।
बाल-मिठाई

बाल मिठाई

बाल मिठाई उत्तराखंड की एक विशेष मिठाई है, जो अल्मोड़ा जिले में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसे खोये से बनाया जाता है और इसके ऊपर छोटी-छोटी चीनी की गोलियां लगी होती हैं। बाल मिठाई का स्वाद अनोखा और मनमोहक होता है, जो किसी भी मिठाई प्रेमी को आकर्षित कर सकता है। इसे बनाने के लिए खोये को धीमी आंच पर पकाया जाता है, और फिर उसे आकार देकर चीनी की गोलियों से सजाया जाता है। बाल मिठाई उत्तराखंड की पहचान बन चुकी है और इसे वहां के त्योहारों और उत्सवों में विशेष रूप से बनाया जाता है। इस मिठाई का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी जी भी कई बार कर चुके हैं।
सिंगोड़ी

सिंगोड़ी

सिंगोड़ी उत्तराखंड की एक पारंपरिक मिठाई है, जो खासकर कुमाऊं क्षेत्र में बनाई जाती है। इसे खास तरह के पत्तों में लपेटकर परोसा जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी खास बन जाता है। सिंगोड़ी को खोये और नारियल के मिश्रण से बनाया जाता है, और इसे मोलू पत्ते में लपेटा जाता है, जो इसे एक अनोखा स्वाद देता है। सिंगोड़ी का स्वाद हल्का और मीठा होता है, जो इसे अन्य मिठाईयों से अलग बनाता है। उत्तराखंड की शादी-ब्याह और त्योहारों में सिंगोड़ी का विशेष स्थान है।