स्वादिष्ट कुमाऊँनी
व्यञ्जन
कुमाँऊनी व्यंजन भारत के उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र का भोजन है । कुमाँऊनी भोजन सरल और पौष्टिक है, जो हिमालय के कठोर वातावरण के लिए उपयुक्त है । दालें जैसे गौहट (या कुलथ जैसी विभिन्न तैयारियों में बनाया जाता है। सभी एक ही दाल से बनी अनूठी तैयारियाँ हैं। दही के साथ झोली या करी। भट्ट की दाल से बनी चुड़कानी और जौला। चावल और गेहूं के साथ मडुआ जैसे अनाज लोकप्रिय हैं।
जब भी बात देवभूमि उत्तराखंड की आती है तो वहाँ के व्यंजनों को भी खूब पसंद किया जाता है फिर चाहे बात झंगुरे की खीर की हो या मंडुवे की रोटी और तिल की चटनी की या हो बात भांग की चटनी की.. उत्तराखंड का पारंपरिक खानपान गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी माना गया है। भारत ही नहीं विदेशों में भी पहाड़ के मंडुवा, झंगोरा, काले भट, गहथ, तिल आदि अपनी मार्केट बना रहे हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक बताते हैं कि पहाड़ी अनाज सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। मंडुवा (मडुआ) मधुमेह की बीमारी में बेहद कारगर है। यह शरीर में चीनी की मात्रा नियंत्रित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। झंगोरा पेट संबधी बीमारियों को दूर करता है। काले भट में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। गहथ की दाल की तासीर गर्म होने के कारण यह गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद है।
कुमाऊँनी जायकेदार खानपान पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, सोशल मीडिया एवं यूट्यूब पर अपार लेखन सम्पदा दृष्टिगोचर हो जाएगी। लेकिन इस जायके का रहस्य बड़ी-बड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कम्पनियों द्वारा निर्मित मसालों पर निर्भर नहीं है। इस जायके का श्रेय तो वहां की प्राकृतिक जलवायु, खनिज युक्त भू-स्थलों से बहने वाले स्रोतों-स्रोतस्विनियों के नीर से सिञ्चित कन्दमूल और विभिन्न अन्न पादपों द्वारा प्रदत्त खाद्यान्नों में रची-बसी सुवास को जाता है। यही कारण है कि कुमाऊँनी महिलाओं द्वारा साधारण नमक को कुमाऊँ में उपलब्ध कुछ अन्य मसालायुक्त सामग्री डालने मात्र से निर्मित कुमाऊँनी नमक इतना स्वादिष्ट हो जाता है कि उसकी मांग आज अमेरिका आदि देशों तक में की जा रही है।
अपने स्वादिष्ट सुवास से लुभाने वाले ‘बस स्थानकों’ पर लगी चाट की दुकानों पर आंखों और जिह्वा को तृप्त करने वाले आलू के गुटकों, भांग की चटनी और ककड़ी अथवा मूली के रायते के स्वाद से भला कौन अनजान होगा?
भला किस उत्तराखंडी ने भट्ट की चुरकाड़ी, उसके डुबकों और उसकी दाल के साथ कुमाऊँ में उगाए गए धान के भात का स्वाद नहीं चखा होगा?
उत्तराखंड के निवासियों के अतिरिक्त अन्य भारतीयजन जिन कुमाऊँनी व्यञ्जनों से अनजान हैं, उनमें प्रमुखतः गडेरी और पिनाऊ के गुटके और सब्जी, सिसूंड़ का साग, थेचवाणी, चियूड़, खाजा, झुंगरे की खीर, छोली, बेड़ू या मंडुवे की रोटी, जौला, झोली, लिंगुड़ आदि उल्लेखनीय हैं।
अपनी जन्मभूमि कुमाऊँ से पलायन कर शहरों में बसे हुए कुमाऊँनीजन इन व्यञ्जनों के लिए कितने लालायित रहते हैं कि जब कभी कोई भी कुमाऊँ में जाता है अथवा कोई रिश्तेदार कुमाऊँ से यहां आता है, तो वह उनसे उक्त व्यञ्जनों की सामग्री मंगवाना नहीं भूलते।
कुछ खास व्यंजनों का विवरण निम्न है:-