कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़ स्थापित 1959
कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़

लोक कलाकार, गायक और संस्कृतिवाहक

हीरा-सिंह-राणा

गोपाल बाबू गोस्वामी

हिमालय सुर सम्राट स्व•गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म संयुक्त प्रांत के अल्मोड़ा जनपद के पाली पछांऊॅं क्षेत्र में मल्ला गेवाड़ के चौखुटिया तहसील स्थित चांदीखेत नामक गॉंव में २ फरवरी १९४१ को मोहन गिरी एवम् चनुली देवी के घर हुआ थाl प्रभाग के मंच पर कुमाऊँनी गीत गाने से उन्हें दिन-प्रतिदिन सफलता मिलती रही और धीरे धीरे वे चर्चित होने लगे। इसी दौरान उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ में अपनी स्वर परीक्षा करा ली। वे आकाशवाणी के गायक भी हो गये। लखनऊ में ही उन्होंने अपना पहला गीत "कैलै बजै मुरूली ओ बैणा" गया था। आकाशवाणी नजीबाबाद व अल्मोड़ा से प्रसारित होने पर उनके इस गीत के लोकप्रियता बढ़ने लगी। १९७६ में उनका पहला कैसेट एच. एम. वी ने बनाया था। बेड़ू पाको बारमासा, घुघुती न बासा, कैलै बजै मुरूली, हाये तेरी रुमाला, हिमाला को ऊँचा डाना, भुर भुरु उज्याव हैगो, जय जय हो बद्रीनाथ, जा चेली जा सराश, जय मैया दुर्गा भवानी आदि उनके प्रसिद्ध गीत हैं गोपाल बाबु गोस्वामी की मृत्यु ब्रेन ट्युमर से हुई जिसका इलाज उनके द्वारा दिल्ली से कराया गया था परन्तु इस रोग से उन्हें इजात ना मिल पाई और २६ नवम्बर १९९६ को गोपाल बाबु गोस्वामी का शरीर पंचतत्वों में विलीन हो गया |
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हीरा सिंह राणा

सुप्रसिद्ध लोक गायक व गीतकार स्व. हीरा सिंह राणा का जन्म अल्मोड़ा जिले के मानिला डंढोली गांव में 16 सितंबर 1942 को नारंगी देवी व मोहन सिंह के घर हुआl हीरा सिंह राणा की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही स्कूल से हुई थी। 15 वर्ष की आयु में लोकगीतों की रचना करने लगे। रोजी-रोटी के दिल्ली गए। सेल्समैन की नौकरी की। बाद 1971 में ज्योली बुरुंश, 1974 में नवयुवक केंद्र ताड़ीखेत, 1985 में मानिला डांडी, 1992 हिमांगन कला संगम दिल्ली, 1987 में मनख्यू पड्याव जैसे लोक सांस्कृतिक समूहों का गठन कर लोक संगीत यात्रा को आगे बढ़ाया। हिरदा के कुमाउंनी गीतों की एलबम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौ मनों की चोरा, ढाई बीसी बरस हाई कमाला, आहा रे जमाना खासी लोकप्रिय हुई। आकाशवाणी नजीबाबाद, लखनऊ व दिल्ली से भी उनके गीत प्रसारित हुए। उनका बहुत प्रसिद्ध गीत रंगीली बिंदी, घाघरी काई.., के संध्या झुली रे.., मेरी मानिला डानी.., लस्का कमर बांधा को खूब सराहा गया। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक हीरा सिंह राणा का 78 वर्ष की आयु में 13 जून 2020 को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
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बिशन सिंह हरियाला

बिशन सिंह हरियाला का जन्म का नाम बिशन सिंह रावत , हालांकि बिशन सिंह कुमाऊंनी त्योहार हरेला से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना नाम बिशन सिंह हरियाला रख लिया। बिशन सिंह हरियाला न केवल गायन में अग्रणी हैं बल्कि वे कुमाऊंनी संस्कृति को बनाए रखने में भी अग्रणी हैं, वे भगनोल, छबेली,झांझरी, के लिए प्रसिद्ध हैं। खोल दे माता खोल भवानी, गोरखे चेली भागुली, काली गंगा को कैलो पानी, पारेभीड़े की बसंती, लाली हो लाली होशिया, बाज़ डाली मुंद मेरी पुष्पा लुकी रे, ए पापा रे नॉन स्टॉप उनके कुछ प्रसिद्ध गाने हैं.
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फौजी ललित मोहन जोशी

उत्तराखंड म्यूजिक इंडस्ट्री के स्टार लोकगायक सुरीली आवाज फौजी ललित मोहन जोशी का जन्म उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील के धुरातोली गांव में 26 जुलाई 1982 को हुआ था. फौजी ललित मोहन जोशी एक सिंगर और स्टेज परफोर्मिंग कलाकार हैं. साल 2001 में फौजी ललित मोहन जोशी ने उत्तराखंड के संगीत जगत में अपना कदम रखा. फौजी ललित मोहन जोशी को तब पहचान मिली जब उनका टक - टकाटक कमला बाटुली लगाए, गाना हिट हुआ. बीते एक दशक में ही कुमाऊंनी गानों में अपनी गायकी के बदौलत उन्होंने उत्तराखंड की म्यूजिक इंडस्ट्री को भी एक नया आयाम दिया है. टक टक कमला बाटुली लगाए, ओ चंदू ड्राइवरा माठूमाठ गाड़ी चला, हे दीपा मिजात दीपा हल्द्वानी बजार में मेरु झुमका गिरी गो, जम्मू कश्मीरा ड्यूटी मेरी जैसे गानों में अपनी आवाज देकर वह आज लाखों लोगों के दिलों में छा गए हैं। सुपरहिट कुमाऊनी गानों में अपनी परफॉर्मेंस देकर वह उत्तराखंड म्यूजिक इंडस्ट्री के एक स्टार सिंगर बन गए हैं।
माया-उपाध्याय

माया उपाध्याय

माया उपाध्याय उत्तराखंड के रानीखेत की रहने वाली हैं.हालांकि उनका जन्म साल 1983 में दिल्ली में हुआ था. जब माया 6 साल की थीं, तब उन्होंने अपना सबसे पहला स्टेज शो अहमदाबाद में किया था. माया सात भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. उनका असली नाम मालविका उपाध्याय हैl साल 2007 में संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित सारेगामापा में उन्होंने प्रतिभाग किया और प्रतियोगिता जीती. साल 2020 में उन्हें उत्तराखंड राज्य तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. माया अब तक 2000 से भी ज्यादा गीत गा चुकी हैं. उनके लगभग सभी गाने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर धूम मचाते हैं. उनका हाल ही में आया हुआ गाना क्रीम पौडरा लोगों को काफी पसंद आ रहा हैl आज का दिना, छोरी लछिमा, माया को टोटल, हाय काकड़ी झिलमा, तेरी मेरी माया, क्रीम पोडरा, चाहा का होटल, उनके कुछ प्रसिद्ध गाने हैं
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पप्पू कार्की

पिथौरागढ़ जिले के सेलाबन (थल) गांव में 30 जून 1984 को जन्मे पप्पू कार्की ने 14 साल की उम्र में पहला गीत रिकार्ड कराया। उनकी माता का नाम कमला कार्की है और उनके पिता का नाम किशन सिंह कार्की है उनकी प्राथमिक और हाई स्कूल की शिक्षा गाँव में ही हुईl विभिन्न शहरों रोजगार के लिए हाथ-पांव मारे। 2010 में आई झम्म लागछी एलबम के पहचान मिली। संघर्ष के बलबूत कम उम्र में ही अपनी पहचान काम कर ली थी। पीके इंटरनेशनल नाम से हल्द्वानी में स्टूडियो खोला। डीडीहाट की जमना छोरी, हीरा समधनी, सुन ले दगड़िया, मधुली, फुलो में भोरो में होली, ऐजा रे चेत बैसाखा म्यर मुनिश्यारा, काजल को टिक लगले, तेरी रंगीली पिछोड़ी कमू, उतरैणी कौतिक लागी रो उनके कुछ प्रसिद्ध गाने हैंl कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे कि 9 जून को नैनीताल जिले के गौनियारों में युवा महोत्सव से वापस लौटते समय सड़क हादसे में उनके जीवन का सफर थम गया।
प्रहलाद-मेहरा

प्रहलाद मेहरा

चार जनवरी 1971 को पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील के चामी भेंसकोट में हेम सिंह और लाली देवी के घर में उनका जन्म हुआ था।प्रहलाद मेहरा को बचपन से ही गायन के साथ ही वाद्य यंत्र बजाने का शौक भी था। वह सुप्रसिद्व लोक गायक गोपाल बाबू गोस्वामी से बेहद प्रभावित थे और यह उनका ही असर था कि वह ताउम्र लोक संगीत को समर्पित रहे। ओ हिमा जाग,पहाड़क चेली ले - कभे नी खाए द्वि रोटी सुख ले जैसे गीतो को स्वर देने वाले प्रसिद्व लोक गायक प्रहलाद मेहरा ने 150 से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दी थी। पहाड़क चेली ले - कभे नी खाए द्वि रोटी सुख ले,चांदी बटना दाज्यू,मेरी मधुली,का छ तेरो जलेबी को डाब,ओ हिमा जाग,कुर्ती कॉलर मा,एजा मेरा दानपुरा जैसे गीत शामिल है। उत्तराखंड के लोक गायक प्रहलाद मेहरा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। हल्द्वानी के कृष्णा अस्पताल में 10 अप्रैल 2024 को अंतिम सांस ली।
गोविंद-दिगारी

गोविंद दिगारी

गोविंद दिगारी का जन्म 19 जून 1983 को पिथोरागढ़ में हुआ है। उनके पिता का नाम हिम्मत सिंह दिगारी और माता का नाम भागीरथी दिगारी है। वह शिक्षा में स्नातक हैं, उनका पहला एल्बम 2001 में नी मिली नौकरी था, उनका पहला हिट गाना 2001 में पहाड़ छुटि ग्यो था, वह अपनी गायिका पत्नी खुशी जोशी के साथ कुमाऊं के कुछ प्रसिद्ध झोड़ा गाने के लिए प्रसिद्ध हैं।पहाड़ों में काम धाम , हिट दे स्याली म्यर दगड़, उत्तराखंड देवभूमि तेरी बलाई ल्युंला, छोड़ी दे भीना मेरी धपेली, अब ऐगो रंगीलो चैता उनके कुछ प्रसिद्ध गाने हैंl
नैननाथ-रावल

नैननाथ रावल

श्री नैननाथ रावल जी का जन्म 13 मई 1943 को अल्मोड़ा जनपद के दन्या क्षेत्र के सिरौड़ा गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री टिकानाथ रावल तथा माता जी का नाम बिशनी देवी था। रावल जी परिवार में कुल छह भाई थे, जिनमें से रावल जी के अलावा एक भाई और जीवित हैं। नैननाथ रावल ने प्रारम्भिक सिक्षा कक्षा 6 तक दन्या के विद्यालय से ही प्राप्त की। उसके बाद आप दिल्ली आ गये और 7 वीं और 8 वीं की पढ़ाई दिल्ली के विद्यालय से प्राप्त की। पारिवारिक स्थिति तथा गायन मे रुचि के कारण आप ने आठवीं के बाद पढाई छोड़ दी और छोटी-मोटी नौकरी के साथ गायन का प्रयास आरम्भ किया। कुछ साल बाद बैंक में टेंमपरेरी कर्मचारी के रूप मे कार्य करते रहे। बैंक में अस्थायी कर्मी के रूप में कार्य करते हुये वर्ष 1970 में आपकी नौकरी बैंक में परमानेंट नौकरी लग गई। परन्तु यह नौकरी रावल जी को रास नही आयी और एक साल में ही आपने यह नौकरी छोड़ दी। आप बताते है कि जिस दिन 1971 में भारत और पाकस्तिान का युद्ध शुरू हुआ था उसी दिन 14 जनवरी को आपने नौकरी छोड़ी थी। उसके बाद आपने अपनी जिन्दगी गायकी को ही सुपुर्द कर दी। दिल्ली में नैननाथ रावल जी ने सबसे पहली रिकार्डिंग हीरदा कुमाउनी कैसेट कम्पनी के लिये की थी। उसके बाद रावल जी ने रामा कैसेट कम्पनी, नीलम कैसट कम्पनी और टी-सीरीज आदि के लिए भी गीतों की रिकार्डिंग की। अब तक आपने कुल मिलाकर लगभग 124 संगीत एल्बम/कैसेट के लिए गीतों की रिकार्डिंग की है। आपने आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के माध्याम से भी कई कुमाऊँनी गीत गाये हैं। नूनो का व्यापरी, मेरो गौं छू रंगीलो, रंगीली बहारा, चौखुटिया की पारबती, बरमा वे नैनीताल को ठंडो पानी, ऊँचा डाना रुछा सैम भली तुमरी वाणी , गाड़ी चलल, छम्म धंतुली, तू मेरी याद मा उनके कुछ प्रसिद्ध गाने हैंl
मीनाक्षी

मीनाक्षी

उत्तराखंड के रामनगर शहर के 24 वर्षीय इतिहास स्नातक ने ऐपण को लोगों के घरों तक पहुंचा दिया है। यह कला कुमाऊं क्षेत्र के हजारों लोगों के लिए आजीविका का स्रोत बन गई है। ऐपण उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की एक पारंपरिक लोक कला है। कुमाऊंनी लोगों का मानना है कि ऐपण एक दैवीय शक्ति का आह्वान करता है जो अच्छा भाग्य लाती है और बुराई को रोकती है। इस कला का उपयोग दीवारों और फर्शों पर आकर्षक रूपांकनों में किया जाता है, जिसमें 'गेरू', जंगलों से एकत्र केसरिया-लाल मिट्टी का रंग और चावल का स्टार्च, जिसे स्थानीय रूप से 'बिस्वार' पेस्ट कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। सबसे पहले ऐपण का आधार 'गेरू' मिट्टी से तैयार किया जाता है और फिर 'बिस्वर' का उपयोग करके विभिन्न डिजाइन बनाए जाते हैं। ऐपण जैसे कला रूपों को देश के अन्य हिस्सों में 'अल्पना' और 'अर्पण' के नाम से भी जाना जाता है। वह 'मीनाकृति - द ऐपण प्रोजेक्ट' नाम से एक प्रोजेक्ट भी चलाती हैं। उन्होंने इसे दिसंबर 2019 में शुरू किया था। ''उत्तराखंड में 4,000 से अधिक महिलाओं ने इसे अपना रोजगार बनाया है और उन्हें अपने खर्चों के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।'' मीनाक्षी के मुताबिक ऐपण आर्ट का सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपये से ज्यादा हो गया है.उन्हें उत्तराखंड की ऐपण गर्ल के नाम से जाना जाता हैl
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ज्योति उप्रेती सती और नीरजा उप्रेती

उप्रेती बहनें (ज्योति उप्रेती सती और नीरजा उप्रेती) उत्तराखंड भारत की बहनें हैं। बड़ी बहन ज्योति उप्रेती सती एक पेशेवर गायिका, संगीतकार, संगीतकार और गीतकार हैं, वह ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन की एक वर्गीकृत कलाकार हैं। ज्योति उप्रेती सती रक्षा मंत्रालय, संस्कृति विभाग, स्वर्ण ज्योति महासम्मान एवं देश के कई अग्रणी मंचों से पुरस्कृत एवं सम्मानित ।लोक भाषाएँ- कुमाऊँनी, हिन्दी तथा देश की विभिन्न भाषाओं में गायन प्रस्तुत करती हैं। छोटी बहन डॉ. नीरजा उप्रेती को भी बचपन के दिनों में संगीत में गहरी रुचि थी और वह अपनी बहन की संगीत यात्रा में उनके साथ थीं। डॉ. नीरज एक योग्य फिजियोथेरेपिस्ट हैं और उनकी आवाज़ अनोखी है। वर्तमान में वह ज़ी टीवी, ज़ी अनमोल और ज़ी5 ऐप पर प्रसारित होने वाले भारत के पहले पौराणिक रियलिटी शो स्वर्ण स्वर्ण भारत में एक प्रतियोगी हैं। उप्रेती सिस्टर्स भारत के उत्तराखंड क्षेत्र के साथ-साथ नेपाल और अन्य एशियाई देशों में जहां उत्तराखंडी लोग रहते हैं, संगीत प्रेमियों के बीच एक लोकप्रिय नाम है। उन्होंने बहुत कम समय में अपने लिए एक जगह बनाई है और दर्शकों द्वारा उनकी सादगी, गायन की अनूठी शैली, उत्तराखंड के पारंपरिक गीतों की दृढ़ता के लिए प्यार किया जाता है जो अब विलुप्त हो गए हैं। उन्होंने मिलकर श्रीमद्भगवद्गीता के संस्कृत पाठ/गीतों का मधुर गायन भी किया है जो ज्योति उप्रेती सती के नाम से उनके यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है। हाल ही में उन्हें अपनी पारंपरिक संस्कृति को संरक्षित करने के प्रयासों के लिए यूथ आइकन YI अवार्ड 2021 से सम्मानित किया गया।
मोहन-उप्रेती

मोहन उप्रेती

मोहन उप्रेती एक भारतीय थिएटर निर्देशक, नाटककार और संगीतकार थे, जिन्हें भारतीय थिएटर संगीत के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। मोहन उप्रेती को कुमाऊँनी लोक संगीत के पुनरुद्धार में उनके अपार योगदान के लिए याद किया जाता है; और पुराने कुमाऊंनी गाथागीतों, गीतों और लोक परंपराओं के संरक्षण की दिशा में उनके प्रयासों के लिए।उप्रेती को उनके गीत "बेदु पाको बारो मासा" के लिए जाना जाता है। मोहन उप्रेती का जन्म 1928 में अल्मोडा में हुआ, जहाँ उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी प्राप्त की 1940 और 50 के दशक में एक युवा व्यक्ति के रूप में, मोहन उप्रेती ने पूरे उत्तराखंड की यात्रा की और क्षेत्र के तेजी से लुप्त हो रहे लोक गीतों, धुनों और परंपराओं को एकत्र किया ताकि उन्हें भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जा सके। मोहन उप्रेती ने पर्वतीय कला केंद्र (पहाड़ियों की कला केंद्र) जैसे संस्थानों की स्थापना करके कुमाऊंनी संस्कृति और संगीत को राष्ट्रीय फोकस में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसका गठन उन्होंने 1968 में दिल्ली में किया था। यह संस्थान कुमाऊंनी में दृढ़ता से निहित नाटक और गाथागीत तैयार करता है।वास्तव में,मोहन उप्रेती को उत्तराखंड में थिएटर के पुनरुद्धार का श्रेय दिया जाता है। वह कई वर्षों तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी), नई दिल्ली के संकाय में रहे, और नाटकों का निर्देशन भी किया। एनएसडी रिपर्टरी कंपनी, जहां उनका सबसे प्रसिद्ध काम नाटक 'इंद्र सभा' था। उनका सबसे महत्वपूर्ण काम 1980 में प्रकाशित महाकाव्य गाथा 'राजुला मालुशाही' है, जो कुमाऊंनी लोक संस्कृति में पहले कभी अंतर्दृष्टि प्रदान नहीं करता है। उनके अन्य महत्वपूर्ण नाटक 'नंदा देवी जागर' हैं, जिस पर उन्होंने एक फिल्म भी बनाई, 'सीता स्वयंवर', और 'हरु हीत'l 1997 में नई दिल्ली में उनका निधन हो गयाl
पवनदीप-राजन

पवनदीप राजन

पवनदीप राजन जन्म 27 जुलाई , 1996 को चंपावत, उत्तराखंड में उनका जन्म हुआ था उनके पिता का नाम सुरेश राजन और माता का नाम सरोज राजन है, वह एक भारतीय गायक हैं जो गायन और वाद्ययंत्र बजाने में अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं। वह द वॉयस इंडिया सीजन 1 और इंडियन आइडल सीजन 12 के विजेता हैं। उन्होंने 2015 में वॉयस ऑफ इंडिया प्रतियोगिता जीतकर अपने गायन करियर की शुरुआत की और तब से उन्होंने संगीत उद्योग में काम किया है। सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाई के बाद, उन्होंने भारत के नैनीताल में कुमाऊं विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 25 अगस्त 2021 को, पवनदीप राजन को उत्तराखंड के कला, पर्यटन और संस्कृति के लिए ब्रांड एंबेसडर नामित किया गया था।
कबूतरी-देवी

कबूतरी देवी

कबूतरी देवी (1945 - 7 जुलाई 2018), एक भारतीय उत्तराखंडी लोकगायिका थीं। उन्होंने उत्तराखंड के लोक गीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रसारित किया था। सत्तर के दशक में उन्होंने रेडियो जगत में अपने लोकगीतों को नई पहचान दिलाई। उन्होंने आकाशवाणी के लिए लगभग 100 से अधिक गीत गाए। कुमाऊं कोकिला के नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित थींl कबूतरी देवी ने लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली। पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति श्री दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। उन्होने आकाशवाणी के लिए करीब 100 से अधिक गीत गाए। उन्हें उत्तराखण्ड की तीजन बाई कहा जाता है। जीवन के 20 साल गरीबी में बिताने के बाद 2002 से उनकी प्रतिभा को सम्मान मिलना शुरू हुआ। [3] पहाड़ी संगीत की लगभग सभी प्रमुख विधाओं में पारंगत कबूतरी देवी मंगल गीत, ऋतु रैण, पहाड़ के प्रवासी के दर्द, कृषि गीत, पर्वतीय पर्यावरण, पर्वतीय सौंदर्य की अभिव्यक्ति, भगनौल न्यौली जागर, घनेली झोड़ा और चांचरी प्रमुख रूप से गाती थी। 2016 में 17वें राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर उत्तराखण्ड सरकार ने उन्हें लोकगायन के क्षेत्र में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया था। 7 जुलाई 2018 को अस्थमा व हार्ट की दिक्कत के बाद सुबह 10:24 बजे उनका निधन हो गया।