महासचिव की कलम से :
मंथन की बेला
मेरे देवतुल्य बंधुओं ! जय बद्री विशाल , जय बाबा केदार जय गोल्ज्यू महाराज जय बागनाथ देवता जय श्री इष्ट देवता आज कुमाऊं समाज उस भाव ,चिंतन और स्थान पर खडा है जहां पर बुद्धि भावहीन व शून्य हो जाती है l
हम उत्तराखंडी लोग अपने देवभूमि को छोडकर मैदान की ओर पलायन कर गए लेकिन हमारी आत्मा अभी भी पहाडों में है l आज हम अपने विरासत , अपनी बोली -भाषा, पहनावे , अपनी संस्कृति, अपने पहाड , गाँव को धीरे धीरे खोते जा रहे हैंl कुमाऊनी संस्कृति को छोड़कर पाश्चात्य रंगमंच को अपना रहे हैं यही भाग्य की विडम्बना हमारे लिए व हमारी आने वाली पीढी के लिए बस किताबों तक सीमित रह जायेगी l
इसी तरह विकास के नाम पर हमने देवभूमि मे बांधों का निर्माण, सुरंगो का निर्माण , जंगलों की अंधाधुंध कटाई करके हमने अपनी सुख सुविधा के लिए देवभूमि को आघात पहुँचा दिया ज़िसका परिणाम केदारनाथ आपदा व उत्तराखण्ड दैवीय आपदा हमारे समक्ष जीते जागते उदाहरण हैंl
“मत छेड़ो मेरी देवभूमि उत्तराखण्ड के पहाडों को, उसकी विरासत को बस ये देवभूमि थी , देवभूमि है व इसे देवभूमि ही रहने दो l “
साथियो यह समय है इन सब बातों पर मंथन करने का , हमे अपनी समस्त सभाओं के माध्यम से , प्रशासन के माध्यम से आम उत्तराखंडियों प्रवासियों में अपनी विरासत को, अपनी संस्कृति बचाने के लिए एकजुट होना चाहिए क्योकि हम ऐसी पीढी में हैं जिनकी बदौलत यहां से इस विरासत को बचाया ज़ा सकता है l
मेरे सम्मानित जनो यह मंथन एक व विचार आपके समक्ष रखता हूँ मुझे पूर्ण विश्वास है कि जब समाज का इस विरासत को बचाने के लिए समर्पण भाव होगा वो दिन दूर नही होगा जब हम अपने उत्तराखंडी विरासत को बचाने के भागीदार बनकर इतिहास के पृष्ठ संजोने मे अहम भूमिका निभायेंगे l
जय हिंद, जय भारत, जय उत्तराखंड
दीपक परिहार
महासचिव, कुमाऊँ सभा, चंडीगढ़