कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़ स्थापित 1959
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कुमाऊँ के पर्व एवं त्योहार

उत्तराखंड राज्य कुमाऊं और गढ़वाल नाम से दो मंडलों में विभक्त है। इसके बारे में प्रसिद्ध है — रंगीलो कुमाऊँ म्यरो छबीलो गढ़वाल। रंगीलो कुमाऊँ से स्वयं ही ध्वनित होता है कि कुमाऊँ में पर्वों, त्योहारों, मेलों-रेलों की भरमार रहती है।

कुमाऊँ के पर्वों और त्योहारों को प्रमुखतः तीन श्रेणियां में विभाजित किया जा सकता है :

1. सौर वर्ष विक्रमी संवत् के महीनों [चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन (क्वार), कार्तिक, अगहन (मार्गशीर्ष), पौष, माघ, फाल्गुन] के प्रथम गते को मनाए जाने वाली संक्रांतियां।

2. चांद्र वर्ष के उपर्युक्त वर्णित महीनों में ही तिथि के अनुसार पड़ने वाले पर्व एवं त्योहार, जो सारे भारत भर में एक साथ मनाए जाते हैं।

3. कुमाऊँ के अलग-अलग स्थानों पर मनाए जाने वाले स्थानीय त्योहार और मेले।

विक्रमी संवत् के प्रत्येक माह के प्रथम गते को मनाए जाने वाले त्योहारों में निम्न त्योहार प्रमुख हैं :

चैत्र मास में फूलदेई और तदुपरांत पूरे महीने वसंत के आगमन की खुशी में रात्रि भर गीतों, झोड़ों आदि का संगीतमय कार्यक्रम।

वैशाख माह के प्रथम गते को बिखोती संक्रांति और बिखोती कौतिक।

ज्येष्ठ मास भगवान् सूर्य को विशेष रूप से समर्पित है। इसी महीने में वट सावित्री व्रत, निर्जला एकादशी व्रत और गंगा दशहरा पर्व पड़ते हैं।

आषाढ़ महीने में गुप्त नवरात्रि, योगिनी एकादशी और देवशयनी एकादशी के व्रत पड़ते हैं।

श्रावण मास के पहले गते को हरेला त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और इसी को कर्क संक्रांति भी कहा जाता है। इसी महीने भिटौली की भी काफी धूमधाम रहती है।

भाद्रपद माह के पहले गते को घी संक्रांति अथवा घी त्यार पड़ता है। इस दिन घी खाना और घी को सिर पर मलना सौभाग्यवर्द्धक बताया जाता है।

आश्विन महीने के पहले गते को मात्र कुमाऊँ में मनाए जाने वाला त्योहार खतड़ुआ पड़ता है। उस दिन अग्नि में नए अन्न और ककड़ी आदि की आहुति दी जाती है।

कार्तिक मास को यदि पर्वों और त्योहारों का सरताज भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, छठ और देवोत्थान एकादशी आदि प्रमुख त्योहार इसी माह में पड़ते हैं।

मार्गशीर्ष महीने में कई त्योहार और पर्व पड़ते हैं। इसे सभी महीनों में अत्यधिक श्रेष्ठ महीना माना गया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय (विभूति योग) में भगवान् स्वयं को मासों में मार्गशीर्ष का महीना बताते हैं। इसी महीने संकष्टी चतुर्थी, काल भैरव जयंती, उत्पन्ना एकादशी, मार्गशीर्ष अमावस्या, गीता जयंती, मोक्षदा एकादशी, दत्तात्रेय जयंती आदि पर्व और त्योहार पड़ते हैं।

पौष महीने के पर्व और त्योहारों में संकट चतुर्थी, पुत्रदा एकादशी और सफला एकादशी प्रमुख हैं।

माघ महीने के पहले गते को कुमाऊँ में उत्तरायणी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इसी को घुघुतिया त्योहार और मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान् सूर्य मकर रेखा को छूकर उत्तर की दिशा में प्रस्थान करना प्रारंभ कर देते हैं।

फाल्गुन मास में पड़ने वाले त्योहार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें होलिका दहन, होली, महाशिवरात्रि आदि पर्व अत्यंत उल्लास और श्रद्धा से मनाए जाते हैं।

चांद्र वर्ष के महीनों में तिथि के अनुसार मनाए जाने वाले त्योहार शेष भारत के त्योहारों की भांति ही मनाए जाते हैं, जिनमें महाशिवरात्रि, होली, दीपावली, नवरात्र व्रत, कर्क संक्रांति, मकर संक्रांति, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

कुमाऊँ के स्थान विशेष में मनाए जाने वाले स्थानीय पर्वों में नंदा देवी का डोला, बारह वर्ष में एक बार होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा, बग्वाल आदि प्रमुख हैं।