कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़ स्थापित 1959
कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़कुमाऊँ सभा (रजि) चण्डीगढ़

1983 कर्वट 2024

जय भारत ! जय उत्तराखंड ! जय कुमाऊं

सन् 1983 मैं जब चण्डीगढ़ आया था तो पता चला यहां पर कुमाऊँ सभा की रामलीला सैक्टर 23 में होती थी । शिव दत्त फुलारा जी रामलीला के डारेक्टर होते थे । उनके सरकारी मकान सैक्टर 20 चण्डीगढ़ में इसकी तैयारी (Rehearsal) होती थी । इतनी बढ़ीया तरीके से Rehearsal होती थी कि कई बार तो रात के 2 बज जाते थे । सभी लोग साईकिलों से उनके निवास पर जाया करते थे । जब रामलीला होती थी तो बैठने के लिए जगह कम पड़ जाती थी । सभी लोग साईकिलों से अपने परिवार के साथ तथा कई तो रिक्शा पर किराया देकर भी आया करते थे । उस समय मैं सैक्टर 8 चण्डीगढ़ में रहता था और मेरे पास साईकिल भी नहीं होती थी और मैं पैदल ही और कभी किसी की साईकिल में रामलीला देखने जाया करता था । तब पंजाब में आतंकवाद का दौर शुरू हो चुका था । पंजाब में हिन्दुओं को भगाया, पीटना और मारा जाने लगा परन्तु चण्डीगढ़ में इसका असर कम था।  

इसी दौरान पहली बार कुमाऊँ सभा के चुनाव बड़ी धूमधाम से सैक्टर 23 के ओपन भवन (बाल भवन) में पुलिस की निगरानी में हुआ थे तथा लाल सिंह रावत चुनाव जीत चुके थे और उनके निवास सैक्टर 27 में बड़ी धूमधाम से पार्टी हुई थी । जब कुमाऊँ सभा की रामलीला शुरू हुई तो इस दौरान रामलीला स्थल पर बम छुपा रखा था, परन्तु इसका पता पहले चलने के कारण यह घटना होने से पहले ही बच गई और बड़ी मुश्किलों से रामलीला का आयोजन पूरा किया गया कुमाऊँ सभा चुनावके बाद सभी लोग अन्य दलों में बट गये । सभी लोगों ने अपनी संस्थाऐं बनाली, चकोट, द्वारहाट, तिखुन, सल्ट, दन्याँनाथ, गिवाड़ यानी की छोटी सभाओं कि बाड़ आ गई और कुमाऊँ सभा में खिचातानी चलती रही । सन् 1984 में पंजाब के राज्यपाल (Governor) श्रीपाण्डे जी आये तो कुमाऊँ सभा द्वारा एक रंगारंग कार्यक्रम टैगोर थिएटर, सैक्टर 18 में रखा गया जिसमें मशहूर गायक गोपाल बापू गौस्वामी को तथा हास्य कलाकार शेरदा अनपढ़ को बुलाया गया । टैगोर थिएटर, सैक्टर 18 में बहुत भीड़ होने के कारण पैर रखने की भी जगह नहीं थी । इसी दौरान राज्यपाल महोदय को आमन्त्रित किया गया था । सभा द्वारा एक माँग पत्र राज्यपाल जी को सौपा गया था जिसमें लिखा था कि चण्डीगढ़ में भवन वास्ते भूखंड दिया जाये पाण्डे जी द्वारा भूखंड sदेना स्वीकार कर लिया गया था ।

 सैक्टर 29 में भवन की साईट की मंजूरी हो गई थी परन्तु सभा के पास आग्रीम राशी जमा करने के लिए पैसा नहीं होने के कारण यह जमीन गढ़वाल सभा को दे दी गई । हमारी सभा सरकार की शर्ते पूरी नहीं कर पा रही थी जिसके कारण यह प्लॉट हमारे हाथों से निकल गया। सभा में इसी तरह ऊथल-पुथल होती रही कोर्ट केस भी चले रामलीला भी बंद हो गई । इसी दौरान श्री नन्दाबल्लभ फुलारा जी द्वारा एक और संस्था का गठन हुआ जिसका नाम सांस्कृतिक रंगमंच, कुमाऊँ, चण्डीगढ़ रख दिया गया तथा संस्था का पंजीकरण भी कर दिया गया । उसके बाद दौबारा से रामलीला शुरू करने का विचार किया गया था तथा रामलीला का जो भी बचाकुचा सामान था इसी संस्था को दान में दे दिया गया था तब रामलीला सैक्टर 15 चण्डीगढ़ में रामलीला मंनचंन हुआ तथा इसी दौरान तीसरे साल सैक्टर 15 की रामलीला में आग लगा दी गई जिसमें रामलीला का सारा सामान जलकर राख हो गया था फिर किसी तरह से सामान खरीदा गया तथा रामलीला शुरू हुई थी। संस्था वाले कड़ी मेहनत करते थे और घर-घर जाकर चंदा इक्ट्ठा करना बहुत टैढ़ी खीर थी । लोगों से जान-पहचान न होने के कारण 2-4 साल संस्था को बढ़ी कठनाईयों का सामना करना पड़ा । इसी दौरान कुमाऊँ सभा चण्डीगढ़ का चुनाव हुआ था । लाल सिंह अधिकारी जी प्रधान बने और उसके बाद फिर धन सिंह रावत जी प्रधान बने थे उनके प्रधान बनने के बाद सभा फिर विवाद में चली गई कोर्ट कचहेड़ी की तारीख में तारीख लगने लगी और सभा कोपभवन में चली गई 6-7 साल तक केस चलने के पश्चात किसी तरह से समझौता हुआ फिर कुमाऊँ सभा, चण्डीगढ़ के चुनाव हुए थे । श्री नगरकोटी जी ने सन् 2000 में पदभार सम्भाला था उसके बाद सभा सुचारू रूप से चलने लगी थी । श्री नगरकोटी जी की पूरी टीम ने सभा को बनाये रखने में काफी मेहनत की तथा उनके कार्य से 90 प्रतिशत लोग खुश भी थे । कार्यकाल पूरा हुआ तो दौबारा चुनाव हुए । जिसमें उद्योगपति श्री सुमन शंकर तिवाड़ी जी मैदान में उतरे थे लेकिन लोगो ने दौबारा भी श्री नगरकोटी जी को भारी बहुमतों से जिताया था क्योंकि उनके नेतृत्व में सभी कार्य भली-भांती होते रहे । इसी दौरान दूसरा कार्यकाल भी पूरा होने वाला था तो सभा के पास जो धन इकट्ठा हुआ था उसको सही जगह इस्तमाल करने के बारे में सोचा और विचार-विर्मश किया गया था । सभी लोगों की राय को मदेनजर रखते हुए बुड़ैल, सैक्टर 45 में एक पुराना निवास लिय गया था उसका रजिस्ट्रेशन करवा दिया गया जिसकी कीमत अभी 70 लाख के लगभग बताई जा रही है। इसी दौरान करोनाकाल होने की वजह से थोड़ा कार्य ढीला पड़ गया ।

 हालात सामान्य होने पर 2023 में चुनाव करवाये थे । अब श्री मनोज रावत जी की पूरी टीम बढ़े लगन से कार्य करने में लगी है । आशा करते है कि इसी प्रकार कार्य करते रहेगें । तब साईकिल का दौर था । लोगों में बड़ा प्यार था । अब सोशल मीड़िया, गाड़ी, मोबाईल, पैसा, कोठी, मकान तथा पढ़े-लिखे ग्रेजुएशन है । लेकिन पहले सभा के पास इतने साधन नहीं थे । आजकल 75 प्रतिशत कार्य तो सोशल मीड़िया, मोबाईल तथा कम्पयूटर से होते है । वह बहुत कठिन दौर था जब लोगों के घर-घर साईकिलों से भूखे-प्यासे जाया करते थे तब जाकर 2, 5 तथा 10 रूपये मिलते थे उस समय सदस्य शूल्क 2,5 तथा 10 रूपय होता था । रामलीला में भी 1, 2, 5 तथा 10 लोग ही होते थे जो 50 या 100 रूपये देते थे । उनको VIP कहा जाता था। उस समय चाय 50 पैसे, बिस्कुट 10 पैसे, आलू प्याज 25 पैसे किलो मिलता था । मुझे 8 रूपये दिहाड़ी मिलती थी । 240 रूपये महिने का 20 रूपये कमरे का किराया 30 रूपये जेब खर्च 100 रूपये बचत होती थी । उस समय अधिकतर लोगों के बच्चे गाँव में रहते थे । यहाँ पर मकान बहुत कम लोग ही बनाते थे । सन् 1988 के बाद लोगो ने हाऊसिंग बोर्ड के मकान खरीदने शुरू करें तब जिरकपुर, बलटाना तथा नया गाँव जैसी अन्य जगहों को लोग जानते भी नहीं थे । उसके बाद तो सभी लोग रिटायरमैन्ट का पैसा यहीं पर लगाने लगे । धीरे-धीरे पूरा पहाड़ खाली हो गया अब तो गाँव में गिने चुने लोग ही रह गए है और जो नई पीढ़ी है वो तो हमें पहचानती भी नहीं है । अधिकतर लोग तो अपने खेत भी भूल चुके है । अब तो सिर्फ भाईचारा मोबाईल तक ही रह गया है । आजकल तो कोई अपने गाँव समाज के बारे में नहीं सोचता है । एक दूसरे को नीचा दिखाने की सोचने लगे है। आज बच्चों की शादियाँ करना मुश्किल हो गया है । एक नाममात्र का समाज रह गया है । नई पीढ़ी को कुमांऊनी भाषा व अपने गाँव से लगाव खत्म हो रहा है । 100 में से अब सिर्फ 5 प्रतिशत ही लोग होगे जिन्हे अपनी भाषा व गाँव से लगाव होगा । आज के दौर में तो त्यौहार भी मोबाईलों पर ज्यादा मनाये जाने लगे है। पहले त्यौहार होते थे तो लोग एक-दूसरे के घर जाया करते थे। गाँव जाते थे तो खिलचौड़ व गुड़ ले जाया करते थे । पूरा गाँव इकट्ठा हो जाता था। आजकल तो गांव में भी कोई बोलने को राजी नहीं है। पहले एक दूसरे का सामान गाँव ले जाया करते थे व बाँट कर खाया करते थे। आजकल तो पहले से भी ज्यादा साधन हो गये है फिर भी कोई सामान ले जाने को तैयार नहीं होता। अब तो लोग हैलो हाय तक ही सीमित रह गये है । पहले कोई गाँव से आता था तो उसके घर आना जाना लगा रहता था तथा पुराने जिनते भी कुमाऊँ सभा के पदाअधिकारी रहे है उन सभी ने सभा को जोड़ने का कार्य किया था। इसी के लिए उनको प्रथम श्रेणी में रखा जाएगा व उनका धन्यवाद करेगें । उनका कार्यकाल भुलाया नहीं जा सकता है। इतने कम साधनों में भी लोग चण्डीगढ़, पंचकुला, कालका, पिजौर, मोहाली में साईकिलों, रिक्शों व बसों के द्वारा सफरकिया करते थे तथा फिर धीरे-धीरे लमरेटा, बजाज, हिरोपुच, लुना वगैरों का इस्तेमाल करने लगे फिर हीरो मोटरसाईकिल, मारूती कार आजकल तो सब कार या एक्टीवा, टैक्सी का इस्तेमाल करने लगे है। साईकिल वाले को तो अब एक निम्नवर्ग का समझा जाता है। पहले लोग साईकिल चलाते थे तो मजबूत हष्ट-पुष्ट रोग मुक्त रहते थे तथा लम्बी आयु तथा तंदरूस्त रहते थे । आजकल तो सभी दवाईयाँ खाते है। बाल काले करवाते है तथा मुछें कटवाते है अपने को अपडेट रखने के लिए। तंदरूस्त रहने के लिए जौगिंग, वोकिंग, जिम का सहारा लेते है । 10 किलो आटा भी मुश्किल से ही उठा पाते है । ऐसी झटपटाती ज़िदगी में किसी के पास समय नहीं है तथा कोई किसी के घर जाने को राजी नहीं है और न की कोई किसी को बुलाने को राजी है। बेटा-बेटी अपनी मर्जी करते है । सास-ससुर व माँ-बाप को कूड़ा-करकट समझने लगे है। रिस्तो के कोई मायने नहीं है । आने वाला समय तो बहुत खतरनाक है। सब रिस्ते खत्म हो रहे है। पश्चिमी सभ्यता का प्रचार व अपने रिश्तें सब बैकार अगर ऐसा ही हालात रहे तो कुमाऊंनी भाषा का लुप्त होना निश्चित है। आजकल तो गाँव में भी सब आधी हिन्दी आधी कुमाऊंनी और बीच में अंग्रेजी भी बोल देते है। ऐसी हालतों में सभा का दायत्व और भी बढ़ जाता है कि समाज जब भी सभा बैठाती है तब अधिक से अधिक कुमाऊंनी भाषा का प्रयोग करें ताकी प्रयोग करते रहेगें तो सब कुछ ठीक हो सकता है । मुझे पूरी आशा है कि नई कार्यकारणी सभी बातों का ध्यान रख कर समाज को आगे बढ़ाने का कार्य करेगी। मैं सभी कुमाऊंनी बन्धुओं से अनुरोध करता हंू कि सभी के हर कार्य में अपना बहुमूल्य योगदान अवश्य करें जिससे पूरे समाज में आप सभी की छवी एक अच्छे सदस्य के रूप में हमेशा प्रेणादायक बनी रहे । यही कामनाओं के साथ सभी कुमाऊंनी बन्धुओं से अपने हाथों से लिखी बातों से किसी को कोई ठेस पहुंचे तो क्षमा चाहता हंू। आशा करता हंू कि सभी मिलकर सभा के हित व अपनी भाषा व अपनी मात्रभूमि उत्तराखंड के बारे में सदैव सचेत व तत्पर रहेगें । जात-पात, ऊँच-नीच सब को भुलाकर एक माला बनाकर रहने में बहुत बड़ी ताकत बनती है । इसी से पूरा समाज आगे बढ़ता है । उसके साथ ही और कई अवसर भी मिलते है । कार्यक्षेत्र में सभी को योगदान करना चाहिए । हमें आधुनिकता के साथ-साथ अपनी संस्कृती व धरोहर को सजोकर रखना चाहिए तथा जिन लोगों ने अपने गाँव छोड़ दिये है वह एक बार गाँव जाकर अपने घर को सवारकर आये तथा गरर्मीयों में 6 महिने वहाँ जरूर जाये जिससे वहां का विकास भी होगा व हम अपने मातृभूमि से भी जुड़े रहेगें । एक समय एैसा आने वाला है कि हमें फिर पहाड़ो की तरफ पलायन करना पड़ेगा लेकिन तब तक सबकुछ छिन चुका होगा। अगर अपने गांव जाएगें तो अपके बच्चे भी जाने के इच्छुक होगें। एक बार अपनी पूर्वजों की भूमि को अवश्य सजाऐं आपको फायदा ही फायदा होगा कोई हानी नहीं होगी । सारी नकारात्मक सोच को छोड़ कर एक बार अपने गांव के बारे में भी अवश्य ही सोचों । अपनी मात्रभूमि को खोजों खाली कागजों में रखने से कुछ नहीं मिलेगा । हकिकत में उसकी देखभाल करें। आज आपके पास पैसा, गाड़ी, मकान सब कुछ है लेकिन शान्ति नहीं है। यह बात 100 प्रतिशत सही है । कुछ धन अपने गांव के मन्दिरों व घरों पर भी खर्च कर के देखों कितनी शान्ति मिलती है । तब ही कुमाऊ भवन की कलपना कीजिये। चण्डीगढ़ में भवन बनाने के लिए काफी परिश्रम व काफी रूपये चाहिए होगें वह भी करोड़ों में चण्डीगढ़ में जो भी भवन, मन्दिर अभी बने है वह काफी मेहनत व लगन से बने है । अगर चण्डीगढ़ में भवन बनाना है तो सभी लोगों को तन-मन-धन का पूरा सहयोग करना पड़ेगा तब ही भवन बन पायेगा । अकेले कार्यकारणी को जिम्मेदार ठेहराना सही नहीं होगा । यह तो एक तरह कि निशुल्क सेवा है। जो निस्वार्थ भाव से की जाती है । एक दूसरे को नीचे दिखाने के लिए नहीं है। अभी तक सभी कार्यकारिणियों से प्रयास किया है तब ही यह संस्था जीवित है। इसको जीवित रखने के लिए सचेत रहना पड़ेगा तब ही भवन बनना सम्भव है। इन सभी तथ्यों को लेकर मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ । लेख में जो भी त्रुटियाँ तथा गल्तियां होंगी उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ । 

जय भारत ! जय उत्तराखंड ! जय कुमाऊं !

आप सभी का मित्र

कमल चन्द्र काण्डपाल

ग्राम कुरचौन,

पो0ओ0 कठपुडियाँ,

जिला अलमोड़ा,

उत्तराखंड

मो0ः-9914698419