कुमाऊँ क्षेत्र का
महत्व
लोककथाओं के अनुसार, भगवान् विष्णु ने समुद्रमंथन के दौरान मंदार पर्वत को सहारा देने के लिए कुमाऊं (लोहाघाट के पास) में अपने दूसरे अवतार में कूर्म (कछुवे ) के रूप में जन्म लिया थाI एक लोककथा और प्रचलित है कि चम्पावती नदी के पूर्व में मौजूद कूर्म पर्वत पर भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार कूर्म यानी कछुवे का रूप धारण कर तीन वर्ष तक तपस्या की थीI एक ही जगह पर खड़े रहने की वजह से कूर्म भगवान के चरणों के चिन्ह शिला पर छप गएI कछुए का अवतार धारण किये भगवान विष्णु को देखकर देवतागणों ने उनकी आराधना कीI तभी से इस पर्वत का नाम कूर्मांचल हुआ जिसका अर्थ है जहां कूर्म अचल हो गये थेI कूर्मांचल का रूप बिगड़ते-बिगड़ते पहले कुमू हुआ और बाद में यही शब्द कुमाऊँ हो गयाI पहले यह नाम चम्पावत और उसके आस-आस के गाँवों को दिया गयाI काली नदी के किनारे के लगती हुई पट्टियाँ ही कूर्मांचल या कुमाऊँ कहलाती थी, बाद में यह मौजूदा सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए प्रयोग किया जाने लगाI उत्तराखंड प्रमुखतः तो प्रशासनिक भागों में विभाजित है कुमाऊँ और गढ़वालI कुमाऊँ मंडल में छह ज़िले नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, पिथौरागढ़ अल्मोड़ा, बागेश्वर तथा चम्पावत हैं I कुमाऊँ शब्द के कई रूपांतरण और भेद हैं, जैसे कि कुमांऊॅं, कुमायूं, कुमाऊँनी लोग, कुमाऊँ क्षेत्र के लोग, कुमाऊँ राज्य, पूर्व कुमाऊँ देश आदि I 1815 से 1857 के बीच ब्रिटिश नियंत्रण के समय इसे केमाँव के नाम से भी जाना जाता थाI इस क्षेत्र का एक और नाम मानसखंड है जो मानसरोवर यात्रा से जुड़ा हुआ हैI कुमाऊँ से कैलाश मानसरोवर जाने का सुगमतम मार्ग बताया जाता हैI कुमाऊँ क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की जननी हैI सांस्कृतिक वैभव, प्राकृतिक सौंदर्य और सम्पदा से संपन्न कुमाऊँ आँचल की एक विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान है। यहाँ के आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, प्रथा-परम्परा, रीति-रिवाज, धर्म-विश्वास, गीत-नृत्य, भाषा बोली सबका एक विशिष्ट स्थानीय रंग है। कुमाऊँ का अस्तित्व भी वैदिक काल से है। स्कन्द पुराण के मानस खण्ड व अन्य पौराणिक साहित्य में मानस खण्ड के नाम से वर्णित क्षेत्र वर्तमान कुमाऊँ मंडल ही है। कुमाऊँ में अनेक प्राचीन मंदिर और तीर्थ स्थल हैं जो कि इस भूमि को बहुत पवित्र बनाते हैं। कुमाऊँ रेजीमेंट, भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट में से एक हैI
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कुमाऊँ सभा चंडीगढ़ का उद्देश्य हमारी संस्कृति को संरक्षित करना और समाज में एकता बढ़ाना है। हम विविध कार्यक्रमों, खेलकूद और त्योहारों के माध्यम से अपनी परंपराओं को जीवंत रखते हैं, जिससे हमारे सदस्य एकजुट और समृद्ध महसूस करते हैं।
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कुमाऊँ सभा चंडीगढ़ का उद्देश्य हमारी संस्कृति को संरक्षित करना और समाज में एकता बढ़ाना है। हम विविध कार्यक्रमों, खेलकूद और त्योहारों के माध्यम से अपनी परंपराओं को जीवंत रखते हैं, जिससे हमारे सदस्य एकजुट और समृद्ध महसूस करते हैं।
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